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गरीब आदमी और अमीर आदमी

गरीब आदमी और अमीर आदमी एक गरीब मोची और एक धनी व्यापारी, दोनो पड़ोसी थे। मोची के घर में ही जूते चप्पल सीने की छोटी सी दुकान थी। काम करते-करते वह अक्सर मौज में आकर गाने लगता। वह बहुत निश्ंिचत मस्तमौला आदमी था। उसे कभी अपने घर के दरवाजे खिड़कियाँ बंद करने की जरूरत नही महसूस हुई। वह रात को भगवान की पूजा करता और मजे से सो जाता। अमीर आदमी इस गरीब, हँसमुख मोची की ओर ईष्र्याभरी नजर से देखा करता। गरीब होने के बावजूद उस मोची को किसी बात की चिंता नही थी। जबकि अमीर आदमी को तरह-तरह की चिंताएँ सताती रहतीं थीं। गाना-गुनगुनाने की बात तो दूर वह खुलकर हँस भी नही सकता था। उसे हमेशा अपनी तथा अपने धन की रक्षा की चिंता सताती रहती थी। रात को वह अपने मकान के सारे दरवाजे खिड़किया बंद कर लेता था। फिर भी, उसे चैन की नींद नही आती थी ! एक दिन अमीर आदमी ने मोची को अपने घर बुलाया। उसने उसे पाँच हजार रूपए दिए और कहा, "लो, ये पैसे रख लो। इन्हे अपने ही पैसे समझो। इन पैसो को मुझे लौटाने की जरूरत नही है।" इतने पैसे पाकर गरीब आदमी को पहले तो बड़ी खशी हुई पर जल्दी ही इन पैसो ने उसके शांति और निश्चिंत

घमंड़ी मोर और बुद्धिमान सारस

घमंड़ी मोर और बुद्धिमान सारस एक मोर था। वह बड़़ा ही घमंडी था और अपनी सुंदरता का बखान करता रहता था। वह रोज नदी के किनारे जाता, पानी में अपनी परछाईं देखता और अपनी सुंदरता की तारीफ करता। वह कहता, जरा मेरी पूँछ तो देखो। कितने मनमोहक रंग हैं मेरे पंखों के! वास्तव में मैं दुनिया के सभी पक्षियों से अधिक सुंदर हूँ। एक दिन मोर को नदी के किनारे एक सारस दिखाई दिया। उसने सारस को देखकर मुँह फेर लिया। सारस का अपमान करते हुए उसने कहा, कितने रंगहीन पक्षी हो तुम! तुम्हारे पंख तो एकदम सादे और फीके हैं। सारस ने कहा, तुम्हारे पंख सचमुच बहुत सुंदर हैं। मेरे पंख तुम्हारे पंखों जितने सुंदर नहीं हैं। पर इससे क्या होता है? तुम अपने पंखों से ऊँची उड़़ान तो नहीं भर सकते! जबकि मैं अपने पंखों से आसमान में बहुत ऊँचाई तक उड़ सकता हूँ। इतना कहकर सारस उड़ता हुआ आकाश में बहुत ऊँचे चला गया। मोर शर्मिंदगी से उसकी ओर देखता ही रह गया। शिक्षा -केवल सुंदरता की अपेक्षा उपयोगिता अधिक महत्वपूर्ण हैं।

दो मेढक

दो मेढक एक बार दो मेढ़क दूध से भरे एक मटके में गिर गए। मटके से बाहर आने के लिये वे दूध में गोल गोल तैरने लगे। मगर उनके पैरो को कोई ठोस आधार नही मिल रहा था। इस लिये छलांग लगाकर बाहर आना उनके मुश्किल हो गया। कुछ देर बाद एक मेढ़क ने दूसरे से कहा, "मै बहुत थक गया हूॅ। अब मै ज्यादा तैर नही सकता!" वह हिम्मत हार गया। उसने मटके से बाहर निकलने की कोशिश छोड़ दी। इसलिए वह मटके के दूध मे डूब कर मर गया। दूसरे मेढ़क ने सोचा, "मै अपनी कोशिश नही छोडूगा। मैं तब तक तैरता रहूँगा जब तक कोई रास्ता नही निकल आता" वह तैरता ही रहा इस प्रकार उसके लगातार तैरने से दूध मठ उठा और उसके ऊपर माखन जमा हो गया कुछ देर बाद मेढ़क ने माखन के गोल पर चढकर जोर की छलांग लगाई वह मटके के बाहर आ गिरा। शिक्षा -ईश्वर उसी की मदद करता है जो स्वयं अपनी मदद करता है

वफादार नेवला

वफादार नेवला रामदास और सावित्री पति-पत्नी थे। उनके एक पुत्र था। उसका नाम महेश था। उन्होनें अपने घर मे एक नेवला पाल रखा था। महेश और नेवला एक-दूसरे से हिल मिल गए थे दोनो पक्के मित्र। एक दिन रामदास अपने खेत गया था। सावित्री भी किसी काम से बाहर गई थी। महेश पालने में गहरी नींद में सो रहा था। नेवला पालने के पास बैठ कर उसकी रखवाली कर रहा था। एकाएक नेवले की नजर साँप पर पड़ी वह महेश के पालने की तरफ सरपट आ रहा था। नेवले ने उछलकर साँप की गर्दन दबोच ली फिर तो साँप और नेवले में जमकर लड़ाई हुई। अंत में नेवले ने साँप को मार डाला। थोड़ी देर में नेवले ने सावित्री को आते देखा। मालकिन का स्वागत करने के लिए वह दौड़कर दरवाजे पर जा पहँुचा। सावित्री नेवले के खून से सने मुँह को देख कर चकित रह गयी। उसे शंका हुई कि नेवले ने उसके बेटे को मार डाला। वह गुस्से से पागल हो गई। उसने बरामदे में पड़ा हुआ डंडा उठाया। और जोर से नेवले को इतना मारा कि नेवला तुंरत मर गया। इसके बाद दौड़ती हुई अंदर के कमरे में गई महेश को सुरझित देख कर बड़ी खुशी हुई। उसकी नजर मरे हुए साँप पर पड़ी उसे अपनी गलती समझते देर नह

बिल्ली के गले मे घंटी

बिल्ली के गले मे घंटी एक पंसारी था। उसकी दुकान में बहुत से चूहे रहते थे। वहाँ उनके खाने का भरपूर समान था। वे अनाज, सूखे मेवे, ब्रेड, बिस्कुट, जैम और चीज़ आदि छककर खाते थे। चूहों के कारण पंसारी को काफी नुकसान होता था। एक दिन उसने सोचा, "इन चूहों से छुटकारा पाने के लिए मुझे कुछ उपाय करना चाहिए। वरना ये तो मुझे कहीं का नहीं छोडेगें। एक दिन दुकनदार एक बड़ी और मोटी-सी बिल्ली ले आया। उसने उसे दुकान में छोड़ दिया। अब चूहे खुलेआम घूम-फिर नहीं सकते थे। बिल्ली रोज किसी न किसी चूहे को पकड़ती और उसे मारकर खा जाती। धीरे-धीरे चूहों की संख्या कम होने लगी। इससे चूहों को बहुत चिंता हुई। उन्होंने इसका उपाय ढूँढने के लिये सभा की। सबने एक स्वर मे कहा, "हमें इस बिल्ली से छुटकारा पाना ही होगा"। पर छुटकारा पाने के लिए क्या करना चाहिए, यह उस सभा में किसी को नहीं सूझता था। तभी एक होशियार चूहे ने खडे़ होकर कहा, "बिल्ली बहुत चालाक है, वह दबे पाँव बड़ी फूर्ती से आती है। इसलिए हमें उसके आने का पता ही नही चलता। हमें किसी तरह उसके गले में एक घंटी बाँध देनी चाहिए।" दूसरे चूह

बेवकूफ शेर

बेवकूफ शेर एक जंगल में एक शेर रहता था। एक दिन उसे बहुत भूख लगी। वह गुफा से बाहर आया और किसी जानवर की तलाश करने लगा। उसे दूर एक पेड़ के नीचे खरगोश दिखाई दिया। वह पेड़ की छाया में मजे से खेल रहा था। शेर खरगोश को पकडने के लिये आगे बढ़ा। खरगोश ने शेर को अपनी ओर आते हुए देखा, तो वह जान बचाने के लिये भागने लगा। शेर ने उसका पीछा किया और लपककर उसे धर दबोचा। शेर ने ज्योंही खरगोश को मारने के लिए पंजा उठाया कि उसकी निगाह हिरन पर पड़ी। उसने सोचा कि इस नन्हे खरगोश से मेरा पेट भर नही सकता। इससे तो हिरन ही अच्छा रहेगा। शेर ने खरगोश को छोड़ दिया। वह हिरन का पीछा करने लगा। हिरन ने शेर को देखा, तो जोर-जोर से छलाँग लगाता हुआ भाग खड़ा हुआ। शेर हिरन को नही पकड़ सका। उसके पीछे भागते-भागते शेर थक कर चूर हो गया। अंत में उसने हिरन का पीछा करना छोड़ दिया। खरगोश भी हाथ से गया और हिरन भी उसे नहीं मिला। अब शेर खरगोश को छोड़ देने के लिये पछताने लगा। शिक्षा -आधी छोड़ सारी को धाए, आधी रहे न सारी पाए।

बारहसिंगे के सींग और पाँव

बारहसिंगे के सींग और पाँव एक बारहसिंगा था। एक बार वह तालाब के किनारे पानी पी रहा था। इतने में उसे पानी में अपना प्रतिबिंब दिखाई दिया। उसने मन-ही-मन सोचा, मेरे सींग कितने सुंदर हैं। किसी अन्य जानवर के सींग इतने सुंदर नहीं हैं। इसके बाद उसकी नजर अपने पैरों पर पड़ी। उसे बहुत दुख हुआ। मेरे पैर कितने दुबले-पतले और भद्दे हैं। तभी उसे थोड़ी दूर पर बाघ के दहाड़ने की आवाज सुनाई दी। बारहसिंगा डरकर तेजी से भागने लगा। उसने पीछे मुड़कर देखा। बाघ उसका पीछा कर रहा था। वह और तेज गति से भागने लगा। भागते-भागते वह बाघ से बहुत दूर निकल गया। आगे एक घनघोर जंगल था। वहाँ पहुँचकर उसे कुछ राहत मिली। वह अपनी गति धीमी कर सावधानी पूर्वक आगे बढ़ने लगा। एकाएक उसके सींग एक पेड़ की डालियों में उलझ गए। बारहसिंगे ने अपने सींग छुड़ाने की बहुत कोशिश की, पर वे नहीं निकले। उसने सोचा, ओह! मैं अपने दुबले-पतले और भद्दे पैरो को कोस रहा था। पर उन्हीं पैरों ने बाघ से बचने में मेरी मदद की मैंने अपने सुंदर सींगों की बहुत तारीफ की! पर ये ही सींग अब मेरी मृत्यु का कारण बनने वाले हैं। इतने में बाघ दौड़ता हुआ आ पहुँचा उ